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सड़क किनारे लहराती पंखुड़ियां

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सड़क किनारे लहराती पंखुड़ियां

तेज चलती गाड़ियों से उठे हवा में कंपन से हम सदैव ही झूमते-लहराते रहते हैं। जंगलों से दूर शहर के बीच हमारी यह दुनिया बेहद अलग सी है। शांति से तो हमारा कोई सरोकार ही नहीं है। बस सारे दिन पीपी- पोपो की कर्कश ध्वनियों के साथ हम नृत्य करते रहते हैं। इतना ही नहीं वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड खत्म करने का कार्य तो हम करते ही हैं पर इसके बदले में हमें धूल की चादर ओढ़नी पड़ती है। मानव अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए हमारा रोपण करता है। एक तरफ घर, फर्नीचर, जमीन अर्थात अपने सुख के लिए हमारी कटाई करता है तो दूसरी ओर प्रदूषण फैलाकर उससे मुक्ति पाने के लिए दोबारा मेरा सहारा लेता है। ईश्वर ने हमें एक दूसरे का पर्याय बनकर भेजा है। ऑक्सीजन के लिए मानव मुझपर निर्भर है तो वही कार्बन डाइऑक्साइड के लिए मेरी निर्भरता उसे पर टिकी है। फल, फूल, औषधि देकर पेट भरने से जीवन दान देने तक मानव की सहायता की है और उसके बदले में सिर्फ प्रकृति से उसका प्यार मांगा है। पेड़ काटने पर निबंध लिखकर तुमने जागरूकता फैला ली पर वही निबंध प्रदूषण पर लिखकर अब तक अक्ल नहीं आईं हैं। प्रदूषण एक चिंता का विषय है जिस पर दिल्ली सरकार की ग्रैप परियोजना को जल्द से जल्द कड़ाई से लागू किया जाना चाहिए। निजी स्तर पर भी हमें प्रदूषण से निपटने के उपाय अपनाने चाहिए।

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