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पहले हक की लड़ाई, फिर अपनों से तन्हाई

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पहले हक की लड़ाई, फिर अपनों से तन्हाई

बीते दिनों गोरखपुर में किन्नर एकता के साथ किन्नर समुदाय के लोगों ने मारपीट की। एकता के निवास स्थल में आकर करीब 8-9 किन्नरों ने उसपर जानलेवा हमला किया। हमले में एकता बुरी तरह घायल हो गई और उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया था। दरअसल, किन्नर एकता माहेश्वरी जिला किन्नर कल्याण समिति की सदस्य, प्रधानमंत्री आवास जन कल्याण समिति, मानबेला और उत्तर प्रदेश राज्य ऐड्स कंट्रोल सोसाइटी की अध्यक्ष है। वह कुछ अन्य किन्नरों के साथ मिलकर किन्नर समाज के लोगों को शिक्षित कर आगे बढ़ाने का कार्य कर रही है। दूसरी ओर बधाई लेकर अपना जीवन चलाने वाले किन्नर इससे नाखुश थे। किसी भी खुशी के मौके पर किन्नरो द्वारा शगुन की रकम लेना बधाई कहलाता है। किन्नर समुदाय के कुछ लोग ऐसे हैं जिनका मानना है कि किन्नर का काम सिर्फ बधाई टोली करना है। वे समाज के बीच रहकर काम नहीं करना चाहते और बाकी किन्नरों को भी रोकना चाहते हैं। इसलिए इन ट्रांसजेंडर समूह ने किन्नर एकता को दोबारा से बधाई टोली शुरू करने और सेक्स वर्क में लौटने को कहा। जब एकता ने इनकार किया तो उस पर तेजाब डालने की धमकी दी गई और उसके निवास स्थल में उपद्रवियों ने आकर मारपीट की। नालसा जजमेंट पास होने के बाद ट्रांसजेंडर को समाज में समान अधिकार मिलने की शुरुआत हुई थी। इस जजमेंट के बाद ही इन्हें मुख्य धारा में रहकर कमाने-खाने का अधिकार दिया गया। मुख्य धारा में शामिल होने के बाद इनमें से कुछ ने हमारे बीच रहकर रहना- खाना शुरू कर दिया था। इनमें से एक है किन्नर कल्याण बोर्ड गोरखपुर की सदस्य, किन्नर एकता। इन्होंने कई सरकारी योजनाओं को क्रियान्वित करने में अपना योगदान दिया है।वर्षों बाद किन्नरो को नालसा जजमेंट से जो अधिकार मिला। अब इनके बीच का समुदाय ही इसे अपनाने को तैयार नहीं है। इनका समुदाय स्वयं ही दो गुटों में बट गया है। एक तरफ लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी, संस्थापक किन्नर अखाड़ा को आदर्श मानने वाले मुख्य धारा से जुड़कर जीवन व्यतीत करना चाहते हैं। वहीं दूसरी और देश के कोने-कोने में गुरु-चेला परंपरा निभाने वाले किन्नर अपनी परंपरागत रीतियों को आदर्श मानते हैं। उनका मानना है कि यदि वे मुख्य धारा से जुड़कर कमाने-खाने लगते हैं तो किन्नरो की बधाई लेने वाली रीत खत्म हो जाएगी। ऐसे में किन्नर समुदाय दो गुटों में विभाजित हो गया है। इनमें आपसी लड़ाई छिड़ गई है। भारत अल्युमिनियम कंपनी में बतौर सिक्योरिटी गार्ड काम कर रही किन्नर ममता (परिवर्तित नाम) बताती है कि पहले किन्नर पैदा होने से मां-बाप ने तिरस्कार किया। मां-बाप से बिछड़ने के बाद हमारे जैसे लोगों ने हमें अपनाया और किन्नरो के गुरु-चेला की परंपरा से हमें चेला बना लिया। ममता कहती है कि उन्होंने इसे ही अपना परिवार मान लिया था। जब ममता को बालकों में ट्रांसजेंडर्स के लिए आरक्षित सीट पर नौकरी मिलने की सूचना मिली। तब उसने चुपचाप जाकर नौकरी पकड़ ली। नौकरी मिलने की सूचना जब ममता की गुरु को मिली तब गुरु मां ने उसे अपने समाज से बहिष्कृत कर दिया। ममता कहती है कि पहले मां-बाप ने जन्म देकर छोड़ा फिर किन्नर परिवार ने भी छोड़ दिया। अब स्थिति ऐसी है कि बीमार पड़ने पर कोई एक गिलास पानी पूछने वाला भी नहीं है। ऐसे सैकड़ो उदाहरण है जिसमें किन्नर समुदाय दो विचारधारा में बटा हुआ नजर आता हैं। समाज में समानता पाने के लिए किन्नरो की लड़ाई अविस्मरणीय है। कठिन परिश्रम के बाद किन्नरो को उनका अधिकार मिला है। एक समय था जब उन्हें अपमानित किया जाता था। ट्रांसजेंडर होना एक अभिशाप था। नालसा जजमेंट पारित होने के बाद आम महिला-पुरुष की तरह उन्हें भी जेंडर राइट मिला है। एक लंबे समय से समाज से कटे-छटे रहने के कारण इनमें शिक्षा का अभाव है। इसका परिणाम है कि अशिक्षित किन्नरो को मुख्य धारा से जुड़ने के फ़ायदे नजर नहीं आ रहे है। सरकार को इन्हें जागरूक करने के लिए अभियान चलाना चाहिए।

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