गंगा यमुना और सरस्वती के संगम स्थल की दूरी तय करने में चार चांद लगाने वाली होती हैं ....
Syberian birds.....
घाट से संगम तक का सफर इन्हें दाना डालते हुए कब पूरा हो जाता मानो इसका आभास ही ना हुआ हो....
क्वेक-क्वेक ,अपनी भाषा में एक दूसरे से दाने को पाने के झगड़े को देखने का आनंद ,आसपास के नजारो का लुफ्त उठाने में बड़ी अड़चन पैदा करता है। अड़चन कहना इसलिए सही है क्योंकि संगम से घाट पर माघ मेले का दृश्य छूट जाना, अभागी किस्मत का ही परिचय है। दूसरी ओर इन्हें देख कर मन में जो तेज गति से प्रसन्नता की लहर उठती है वह गंगा ,यमुना, सरस्वती के संगम की लहरों को टक्कर दे बैठती है।
वैसे तो यह पक्षी यहां प्रयाग में हमेशा नहीं रहते पर माघ माह में इनका आगमन ,प्रयाग के भव्य मेले में आए हुए विशेष मेहमानों की भांति देखा जाता है। यदि प्रयाग के इन मेहमानों से आपको भी दोस्ती करनी है तो प्रयाग से दूरी सही नहीं......
बैग उठाएं,स्टेशन जाए और पहुंच जाएं, देवताओं की नगरी प्रयागराज.......
Picture courtesy
Rakhi Tripathi ❤️
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