लोकतंत्र का चौथा स्तंभ ,सूचना एवं प्रचार-प्रसार का सशक्त माध्यम पत्रकारिता है। ऐसी कला जिसमें भाषा का ज्ञान होना सर्वोपरि है। भाषा वह साधन है, जो पत्रकारिता को रूह प्रदान करती हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपनी भाषा से लगाव रखता है। विश्व की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या वाले देश हिंदुस्तान की लोकप्रियता हिंदी पत्रकारिता है। आधुनिक काल ,पत्रकारिता के व्यवसायीकरण का है। जिसके कारणवश खबरें जल्द से जल्द देने की होड़ व आपसी प्रतिस्पर्धा में हिंदी पत्रकारिता की भाषा का रूपांतरण होता चला जा रहा है। जिसका विश्लेषण इस प्रकार है-
गंगा यमुना और सरस्वती के संगम स्थल की दूरी तय करने में चार चांद लगाने वाली होती हैं ....
प्रत्येक धर्म का मूल उद्देश्य मानव जाति के संतुलित विकास एवं सामंजस्य को बढ़ावा देना होता है। धर्म और हिंसा एक दूसरे के विरोधी है और धर्म या धर्मों के नाम पर हिंसा करना उसके मूल उद्देश्य को खत्म कर देने जैसा होता है।अधिकतर धर्मों में शांति और अहिंसा के सिद्धांत बताए गए हैं जिसे अपनाने से हम समाज में शांति और सौहार्द बनाए रख सकते हैं। लेकिन हर वर्ष रामनवमी के मौके पर भड़के दंगे और अराजक तत्वों के कारण देश में अशांति का माहौल दिखाई पड़ता है। हर धर्म शांति, और सहिष्णुता को अपनाने की सलाह देता है।धर्म के नाम पर हिंसा की जगह, हमें धर्म के सिद्धांतों को अपने जीवन में अपनाने का प्रयास करना चाहिए। बल्कि ,धर्म को अपने घर के दरवाज़ों या धार्मिक स्थलों के भीतर ही रखना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को अन्य स्थलों पर केवल हिंदुस्तानी होने का परिचय देना चाहिए। जिस दिन हिंदुस्तानी होने की भावना सभी लोगों में पनपने लगेगी उस दिन हिंसा और अशांति का यह बवंडर समाज से समाप्त हो जाएगा।
मौजूदा दौर में बॉलीवुड में बन रही लगभग सभी गीतों में रस खत्म हो गया है। जल्दबाजी में लिरिक्स लिखने का शौक, भाषा में फिसड्डी पकड़, शून्य विचार विमर्श क्षमता या पैसे का लालच आदि आदि...... कारण कोई भी हो पर मेरा मानना है की भारत के सर्वोच्च संस्थानों में संगीत की शिक्षा ले रहें विद्यार्थियों को भारतीय संगीत जगत में अपना योगदान देने के अवसर प्रदान किए जाने चाहिए। जिससे वैश्विक पटल पर भारतीय संगीत की ताकत को हर कोई जान सके। साथ ही हम भारतीयों के कर्णों में हमारे वास्तविक प्राचीन संगीत कला की रमणीयता सुनाई पड़े।
कुछ समय पहले छत्तीसगढ़ आदिवासी समूह द्वारा आंदोलन किए जाने पर हसदेव अरण्य की कटाई को रोका गया था। जंगल साफ करने का कारण अडानी जी को कोयला खनन के लिए पेड़- पौधे मुक्त साफ जमीन मुहैया कराना है।
छत्तीसगढ़ में बीजेपी ने भारी बहुमत से जीत हासिल की है। कुल 90 सीटों वाली विधानसभा में भाजपा के 54 प्रत्याशियों ने अपनी सीट पक्की कर ली हैं। वहीं कांग्रेस ने कुल 35 सीटों पर जीत दर्ज की हैं।
बीते दिनों गोरखपुर में किन्नर एकता के साथ किन्नर समुदाय के लोगों ने मारपीट की। एकता के निवास स्थल में आकर करीब 8-9 किन्नरों ने उसपर जानलेवा हमला किया। हमले में एकता बुरी तरह घायल हो गई और उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया था। दरअसल, किन्नर एकता माहेश्वरी जिला किन्नर कल्याण समिति की सदस्य, प्रधानमंत्री आवास जन कल्याण समिति, मानबेला और उत्तर प्रदेश राज्य ऐड्स कंट्रोल सोसाइटी की अध्यक्ष है। वह कुछ अन्य किन्नरों के साथ मिलकर किन्नर समाज के लोगों को शिक्षित कर आगे बढ़ाने का कार्य कर रही है। दूसरी ओर बधाई लेकर अपना जीवन चलाने वाले किन्नर इससे नाखुश थे। किसी भी खुशी के मौके पर किन्नरो द्वारा शगुन की रकम लेना बधाई कहलाता है। किन्नर समुदाय के कुछ लोग ऐसे हैं जिनका मानना है कि किन्नर का काम सिर्फ बधाई टोली करना है। वे समाज के बीच रहकर काम नहीं करना चाहते और बाकी किन्नरों को भी रोकना चाहते हैं। इसलिए इन ट्रांसजेंडर समूह ने किन्नर एकता को दोबारा से बधाई टोली शुरू करने और सेक्स वर्क में लौटने को कहा। जब एकता ने इनकार किया तो उस पर तेजाब डालने की धमकी दी गई और उसके निवास स्थल में उपद्रवियों ने आकर मारपीट की। नालसा जजमेंट पास होने के बाद ट्रांसजेंडर को समाज में समान अधिकार मिलने की शुरुआत हुई थी। इस जजमेंट के बाद ही इन्हें मुख्य धारा में रहकर कमाने-खाने का अधिकार दिया गया। मुख्य धारा में शामिल होने के बाद इनमें से कुछ ने हमारे बीच रहकर रहना- खाना शुरू कर दिया था। इनमें से एक है किन्नर कल्याण बोर्ड गोरखपुर की सदस्य, किन्नर एकता। इन्होंने कई सरकारी योजनाओं को क्रियान्वित करने में अपना योगदान दिया है।वर्षों बाद किन्नरो को नालसा जजमेंट से जो अधिकार मिला। अब इनके बीच का समुदाय ही इसे अपनाने को तैयार नहीं है। इनका समुदाय स्वयं ही दो गुटों में बट गया है। एक तरफ लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी, संस्थापक किन्नर अखाड़ा को आदर्श मानने वाले मुख्य धारा से जुड़कर जीवन व्यतीत करना चाहते हैं। वहीं दूसरी और देश के कोने-कोने में गुरु-चेला परंपरा निभाने वाले किन्नर अपनी परंपरागत रीतियों को आदर्श मानते हैं। उनका मानना है कि यदि वे मुख्य धारा से जुड़कर कमाने-खाने लगते हैं तो किन्नरो की बधाई लेने वाली रीत खत्म हो जाएगी। ऐसे में किन्नर समुदाय दो गुटों में विभाजित हो गया है। इनमें आपसी लड़ाई छिड़ गई है। भारत अल्युमिनियम कंपनी में बतौर सिक्योरिटी गार्ड काम कर रही किन्नर ममता (परिवर्तित नाम) बताती है कि पहले किन्नर पैदा होने से मां-बाप ने तिरस्कार किया। मां-बाप से बिछड़ने के बाद हमारे जैसे लोगों ने हमें अपनाया और किन्नरो के गुरु-चेला की परंपरा से हमें चेला बना लिया। ममता कहती है कि उन्होंने इसे ही अपना परिवार मान लिया था। जब ममता को बालकों में ट्रांसजेंडर्स के लिए आरक्षित सीट पर नौकरी मिलने की सूचना मिली। तब उसने चुपचाप जाकर नौकरी पकड़ ली। नौकरी मिलने की सूचना जब ममता की गुरु को मिली तब गुरु मां ने उसे अपने समाज से बहिष्कृत कर दिया। ममता कहती है कि पहले मां-बाप ने जन्म देकर छोड़ा फिर किन्नर परिवार ने भी छोड़ दिया। अब स्थिति ऐसी है कि बीमार पड़ने पर कोई एक गिलास पानी पूछने वाला भी नहीं है। ऐसे सैकड़ो उदाहरण है जिसमें किन्नर समुदाय दो विचारधारा में बटा हुआ नजर आता हैं। समाज में समानता पाने के लिए किन्नरो की लड़ाई अविस्मरणीय है। कठिन परिश्रम के बाद किन्नरो को उनका अधिकार मिला है। एक समय था जब उन्हें अपमानित किया जाता था। ट्रांसजेंडर होना एक अभिशाप था। नालसा जजमेंट पारित होने के बाद आम महिला-पुरुष की तरह उन्हें भी जेंडर राइट मिला है। एक लंबे समय से समाज से कटे-छटे रहने के कारण इनमें शिक्षा का अभाव है। इसका परिणाम है कि अशिक्षित किन्नरो को मुख्य धारा से जुड़ने के फ़ायदे नजर नहीं आ रहे है। सरकार को इन्हें जागरूक करने के लिए अभियान चलाना चाहिए।
दिल्ली की लगातार खराब होती वायु में भी सरोजनी नगर मार्केट की रौनक कम नहीं हुई है। बीते चार दिनों से धकम-धुक्की वाली भीड़ जमकर दीवाली की खरीदारियों में जुटी हुई है। एक तरफ जहां निरंतर गिरते ए.क्यू.आई ने दिल्ली वासियों के फेफड़े और गले जाम कर दिए है वहीं दूसरी ओर बाजार की भीड़ भारी जोखिम उठा रही हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो महिला के अंडाशय में जब पुरुष शुक्राणु प्रवेश करता है, तब निषेचन की क्रिया से भ्रूण का निर्माण होता है। महिला व पुरुष दोनों के प्रजनन कोशिकाओं के न्यूक्लियस में पाए जाने वाले क्रोमोसोम्स भ्रूण के लिंग का चयन करते हैं। महिला व पुरुष दोनों के कोशिकाओं के केंद्रक में 23 जोड़े अर्थात कुल 46 क्रोमोजोम्स पाए जाते हैं। अर्धसूत्री विभाजन अर्थात निषेचन की क्रिया के दौरान पुरुष व महिला के कुल 46-46 क्रोमोजोम्स में से बराबर 23-23 क्रोमोजोम्स बटकर आने वाले बच्चे के 46 क्रोमोसोम्स के साथ उसके शरीर की डीएनए इंफॉर्मेशन संयोजित करते हैं। जिससे भ्रूण के शरीर का निर्माण होता है। इन्हीं 46 क्रोमोजोम्स में एक जोड़ा भ्रूण के लिंग को तय करता है। महिला के कोशिकाओं में 23वा जोड़ा XX क्रोमोजोम का होता है वही पुरुष कोशिकाओं में यह XY क्रोमोसोम्स का होता है। प्रजनन के दौरान अर्धसूत्री विभाजन में दोनों जोड़ों में से 1-1 कैरेक्टर भ्रूण के 23वें क्रोमोसोम के रूप में आता है। यदि महिला का एक X और पुरुष का एक X मिलता है ,तो XX क्रोमोसोम के संयोजन से लड़की का जन्म होता है वही महिला का एक X और पुरुष का एक Y मिलने से XY क्रोमोसोम के संयोजन से पुरुष का जन्म होता है। सामान्य स्थितियों में भ्रूण का जन्म लड़का या लड़की के स्वरूप में हो जाता है। परंतु कई बार अनेक कारणों से दो क्रोमोजोम्स के संयोजन होने के बजाय तीन या चार भी संयोजित हो जाते हैं। जिससे XXY , XXX, XXYY जैसे असामान्य क्रोमोजोम्स के संयोजन से लिंग में विभिन्नता दिखाई पड़ती है। ऐसे भ्रूण किन्नर या हिजड़े के रूप में जन्म लेते हैं।
हमारे जीवन में उपवास का एक अलग सा महत्व होता है। धार्मिक दृष्टि से देखें ,तो ईश्वर की आराधना के लिए और वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो पाचन तंत्र को सेहतमंद रखने के लिए, उपवास किया जाता है। कुल मिलाकर बात करें तो यह शारीरिक और मानसिक दोनों रूपों से मानव के लिए हितैषी होता है। कल शाम इसी शब्द उपवास को एक नए नजरिए से देखा, एक नए शब्द के साथ और वह था, 'डिजिटल उपवास'। 21वीं सदी में धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहे इंटरनेट की दुनिया में सब कुछ डिजिटल-डिजिटल है। जिसने मानव को कुछ यू जकड़ लिया है कि वह इसे ही अपनी दुनिया मान बैठा है। मानव के लिए सामाजिक होना, सोशल मीडिया पर विश्व भर के लोगों से चैटिंग करना हो गया है। इन तकनीकी गैजेट्स की लत ने बाह्य दुनिया से उसका संपर्क ही काट दिया है। लत कुछ ऐसी के कई गंभीर बीमारियों के आगमन का कारण बन रही जिसमें प्रमुख अवसाद ,अनिद्रा, दुश्चिंता हैं। इन्हीं समस्याओं से बचने के लिए फोर्टिस अस्पताल मुंबई के मनोचिकित्सक डॉक्टर हीरक पटेल ने डिजिटल उपवास करने की हिदायत दी। इसका अर्थ है सारे डिजिटल उपकरणों से दूर रहने का प्रयास, जिससे इन गैजेट्स की लत से छुटकारा बेहद आसानी से पाया जा सकता है। पर क्या ये उपवास इतना आसान है, यह भी चिंतन का विषय हैं। वर्तमान में जब हम एक ऐसे युग में है, जहां मानव के लिए खाने और पीने से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण कार्य अपने गैजेट्स के साथ समय बिताना है तब डिजिटल उपवास करना कितना कठिन हो सकता है इसका अनुमान लगाना भी जटिल है।
बिहार में जातिगत जनगणना लागू होने से राजनीतिक घमासान छीड़ चुका है। 2 अक्टूबर 2023 को ज.द.(यू) नेता नीतीश कुमार नें जाति आधारित गणनाओं के आंकड़े जारी कर दिये। माना जा रहा है कि 2024 के चुनावी संग्राम में बीजेपी को टक्कर देने के लिए जातिगत जनगणना एक अहम मुद्दा हो सकता हैं। यही कारण है कि आई,एन.डी.आई.ए गठबंधन समेत बड़ी पार्टियों ने अपनी सियासी रणनीति इसके अधीन ही पिरों ली हैं। एक तरफ़ जहां आई,एन.डी.आई.ए गठबंधन जातिगत जनगणना को लेकर अपनी आवाज़ बुलंद कर रहा है, वहीं दूसरी ओर खुद प्रधानमंत्री नें गरीब कल्याण को सर्वोपरि बताया है। अब सवाल यह उठता है कि क्या वास्तव में हमें जातिगत जनगणना की जरुरत हैं या यह सब ध्रुवीकरण की राजनीति को सरल बनाने के मायनें है।
तेज चलती गाड़ियों से उठे हवा में कंपन से हम सदैव ही झूमते-लहराते रहते हैं। जंगलों से दूर शहर के बीच हमारी यह दुनिया बेहद अलग सी है। शांति से तो हमारा कोई सरोकार ही नहीं है। बस सारे दिन पीपी- पोपो की कर्कश ध्वनियों के साथ हम नृत्य करते रहते हैं। इतना ही नहीं वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड खत्म करने का कार्य तो हम करते ही हैं पर इसके बदले में हमें धूल की चादर ओढ़नी पड़ती है। मानव अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए हमारा रोपण करता है। एक तरफ घर, फर्नीचर, जमीन अर्थात अपने सुख के लिए हमारी कटाई करता है तो दूसरी ओर प्रदूषण फैलाकर उससे मुक्ति पाने के लिए दोबारा मेरा सहारा लेता है। ईश्वर ने हमें एक दूसरे का पर्याय बनकर भेजा है। ऑक्सीजन के लिए मानव मुझपर निर्भर है तो वही कार्बन डाइऑक्साइड के लिए मेरी निर्भरता उसे पर टिकी है। फल, फूल, औषधि देकर पेट भरने से जीवन दान देने तक मानव की सहायता की है और उसके बदले में सिर्फ प्रकृति से उसका प्यार मांगा है। पेड़ काटने पर निबंध लिखकर तुमने जागरूकता फैला ली पर वही निबंध प्रदूषण पर लिखकर अब तक अक्ल नहीं आईं हैं। प्रदूषण एक चिंता का विषय है जिस पर दिल्ली सरकार की ग्रैप परियोजना को जल्द से जल्द कड़ाई से लागू किया जाना चाहिए। निजी स्तर पर भी हमें प्रदूषण से निपटने के उपाय अपनाने चाहिए।